जाट और मराठा साम्राज्य
आगरा संग्रहालय के नाम पर एक बार फिर दो बड़ी शक्तियां आमने सामने हो गयी हैं। जब मुगल भारत मे आये थे तब राजधानियां बारी बारी से दिल्ली और आगरा में परिवर्तित कर रहे थे।
आगरा किले में औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को बंदी बनाया था मगर वे बच निकले थे। जिससे गुस्सा होकर औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़ दिया था, जब यह बात राजगढ़ पहुँची तो शिवाजी महाराज बहुत दुखी हुए और उन्होंने प्रण लिया कि मंदिर पुनः स्थापित होगा और आगरा भी आजाद होगा।
सन 1753 में भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने आगरा पर हमला किया, मुगलों और जाटों में युद्ध हुआ जाट विजयी हुए। महाराज ने आगरा में भयंकर नरसंहार किया, कई मुसलमानों ने तो महाराज सूरजमल के डर से दाढ़ी तक कटा ली ताकि जाटों से रक्षा हो सके।
महाराज सूरजमल ने ताजमहल तोड़ने का निश्चय किया मगर जब उसके सामने पहुँचे तो उसकी खूबसूरती देखकर योजना बदल ली और ताजमहल के बाहर लगे चाँदी के दरवाजे उखाड़ लिए।
आगरा पर शासन मुगलों का था मगर विधान जाटों का चल रहा था, 1757 में मराठे उत्तर भारत मे आ गए। पेशवा रघुनाथ राव ने मुगलों को हराकर दिल्ली को स्वतंत्र किया। इसके बाद वे अफगान लुटेरे अहमदशाह अब्दाली पर टूट पड़े, अब्दाली की सेना को उन्होंने लाहौर, अटक और पेशावर में पस्त कर दिया।
पेशवा रघुनाथ राव जाटों के लिये भी सिरदर्द बन गए उन्होंने आगरा में मराठा सेना तैनात कर दी। जाटों ने इसका विरोध किया तो उस विरोध को अनदेखा कर दिया। मराठा और जाट सेना आमने सामने आ गयी पर प्रथम हमला करने में दोनो ही हिचक रहे थे।
अंततः मराठों और जाटों में संधि हुई, महाराज सूरजमल ने आगरा मराठों की नगरी मान ली, बदले में मराठों ने मथुरा सूरजमल को दे दिया, साथ ही भरतपुर के आसपास राजपूतों से जीती बहुत सी जमीन जाटों को सौंप दी। पर जाटों को ये शर्त माननी पड़ी कि वे दिल्ली और आगरा को मराठा साम्राज्य मानेंगे तथा पेशवा के सेवक मुगल बादशाह पर फिर से हमला नही करेंगे।
दोनो के संबंधों में सदा खटास और मिठास बनी रही। द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध मे जाटों ने मराठों का साथ दिया और भरतपुर में अंग्रेजो को पराजित किया। मगर आगरा के युद्ध में मराठों और जाटों की संयुक्त रूप से पराजय हुई और यह नगर ईस्ट इंडिया कंपनी में मिला लिया गया।
अब उत्तरप्रदेश सरकार ने आगरा के म्यूजियम का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखने का निर्णय लिया है, पर जाट विरोध कर रहे हैं और वे इसका नाम महाराज सूरजमल के नाम पर चाहते हैं। ज्ञातव्य हो अंग्रेजो से पूर्व आगरा मराठा साम्राज्य का अंग था।
मराठा और जाट दोनो हिन्दू हैं, दोनो क्षत्रिय हैं इन दोनों को यह समझना होगा कि जब तक हिंदुकुश पर्वत भारत को छाँव नही देता तब तक हम इसे अखण्ड भारत नही कह सकते, इसलिए समझदारी इसी में है कि इस समय दोनो ही जातियां महाराज सूरजमल और छत्रपति शिवाजी के नाम पर ना लड़ें।
वे दोनों स्वर्ग में बैठे हिन्दुओं को एक दूसरे से लड़ता देख खुद पर शोक कर रहे होंगे। दोनो ही नाम भारत और हिन्दू अस्मिता के प्रतीक हैं। नाम रखने का निर्णय सरकार पर ही छोड़ दें, सरकार ज्यादा से ज्यादा यह कर सकती है कि म्यूजियम के दो भाग बनाये एक का नाम महाराज सूरजमल पर कर दे और दूसरे का छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर।
।।जय जाट, जय मराठा, जय भारत।।
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