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Showing posts from October, 2020

पाप का फल

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एक ब्राह्मण ने बगीचा लगाया। उसे बड़े मनोयोगपूर्वक सम्हालता, पेड़ लगाता, पानी देता। एक दिन गाय चरती हुई बाग में आ गई और लगाये हुए कुछ पेड़ चरने लगी। ब्राह्मण का ध्यान उस ओर गया तो उसे बड़ा क्रोध आया। उसने एक लठ्ठ लेकर उसे जोर से मारा। कोई चोट उस गाय पर इतने जोर से पड़ी कि वह वहीं मर गई। गाय को मरा जानकर ब्राह्मण बड़ा पछताया। कोई देख न ले इससे गाय को घसीट के पास ही बाग के बाहर डाल दिया। किन्तु पाप तो मनुष्य की आत्मा को कोंचता रहता है न। उसे सन्तोष नहीं हुआ और गौहत्या के पाप की चिन्ता ब्राह्मण पर सवार हो गई। बचपन में कुछ संस्कृत ब्राह्मण ने पढ़ी थी। उसी समय एक श्लोक उसमें पढ़ा जिसका आशय था कि हाथ इन्द्र की शक्ति प्रेरणा से काम करते हैं, अमुक अंग अमुक देवता से। अब तो उसने सोचा कि हाथ सारे काम इन्द्र शक्ति से करता है तो इन हाथों ने गाय को मारा है इसलिए इन्द्र ही गौहत्या का पापी है मैं नहीं? मनुष्य की बुद्धि की कैसी विचित्रता है जब मन जैसा चाहता है वैसे ही हाँककर बुद्धि से अपने अनुकूल विचार का निर्णय करा लेता है। अपने पाप कर्मों पर भी मिथ्या विचार करके अनुकूल निर्णय की चासनी चढ़ा...

गद्दार तीतर

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एक कहानी सुनी थी कि किसी￰ बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था! उसके पास सी जाली वाली बक्से में बहुत सारे तीतर थे और एक छोटे से बक्से में सिर्फ एक तीतर किसी ग्राहक ने उससे पूछा एक तीतर कितने का है? तो उसने जवाब दिया, एक तीतर की कीमत 40 रूपये है! ग्राहक ने दूसरे बक्से में जो नन्हा तीतर: था उसकी कीमत पूछी तो तीतर वाले ने जवाब दिया! अव्वल तो मैं इसे बेचना ही नहीं चाहूंगा, लेकिन अगर आप लेने की जिद करोगे तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी. ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा, इसकी कीमत 500 रुपया क्यों? इस पर तीतर वाले का जवाब था,ये मेरा अपना पालतू तीतर है! और दूसरे तीतरो को जाल में फसाने का काम करता है और दूसरे सभी फंसे हुए तीतर है! ये चीख पुकार करके दूसरे तीतरो को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे एक जगह जमा हो जाते है और फिर मैं आसानी से शिकार कर पाता हूँ! इसके बाद फंसाने वाले तीतर को उसके मन पसंद की खुराक दे देता हूँ, जिससे ये खुश हो जाता है बस इस वजह से इसकी कीमत ज्यादा है! उस ग्राहक ने पूछा आप इतने सारे तीतर रोज कैसे पकड़ते हो  तो शिकारी दुकानदार बोला कि जब मैं जंगल से तीतर पकड़ कर ल...

जाट और मराठा साम्राज्य

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आगरा संग्रहालय के नाम पर एक बार फिर दो बड़ी शक्तियां आमने सामने हो गयी हैं। जब मुगल भारत मे आये थे तब राजधानियां बारी बारी से दिल्ली और आगरा में परिवर्तित कर रहे थे। आगरा किले में औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को बंदी बनाया था मगर वे बच निकले थे। जिससे गुस्सा होकर औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़ दिया था, जब यह बात राजगढ़ पहुँची तो शिवाजी महाराज बहुत दुखी हुए और उन्होंने प्रण लिया कि मंदिर पुनः स्थापित होगा और आगरा भी आजाद होगा। सन 1753 में भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने आगरा पर हमला किया, मुगलों और जाटों में युद्ध हुआ जाट विजयी हुए। महाराज ने आगरा में भयंकर नरसंहार किया, कई मुसलमानों ने तो महाराज सूरजमल के डर से दाढ़ी तक कटा ली ताकि जाटों से रक्षा हो सके।  महाराज सूरजमल ने ताजमहल तोड़ने का निश्चय किया मगर जब उसके सामने पहुँचे तो उसकी खूबसूरती देखकर योजना बदल ली और ताजमहल के बाहर लगे चाँदी के दरवाजे उखाड़ लिए। आगरा पर शासन मुगलों का था मगर विधान जाटों का चल रहा था, 1757 में मराठे उत्तर भारत मे आ गए। पेशवा रघुनाथ राव ने मुगलों को हराकर दिल्ली को स्वतंत्र किया। इसके बाद...

जीवन क्या है

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विश्वास ही जीवन है कुछ लोग अपनी पढाई 22 साल की उम्र में पुर्ण कर लेते हैं, मगर उनको कई सालों तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती, कुछ लोग 25 साल की उम्र में किसी कंपनी के सीईओ बन जाते हैं और 50 साल की उम्र में हमें पता चलता है वह नहीं रहे, जबकि कुछ लोग 50 साल की उम्र में सीईओ बनते हैं और 90 साल तक आनंदित रहते हैं, बेहतरीन रोज़गार होने के बावजूद कुछ लोग अभी तक अविवाहित है और कुछ लोग बिना रोज़गार के भी शादी कर चुके हैं और रोज़गार वालों से ज़्यादा खुश हैं। बराक ओबामा 55 साल की उम्र में रिटायर हो गये... जबकि ट्रंप 70 साल की उम्र में शुरुआत करते है, कुछ लोग परीक्षा में फेल हो जाने पर भी मुस्कुरा देते हैं और कुछ लोग एक नंबर कम आने पर भी रो देते हैं, किसी को बिना कोशिश के भी बहुत कुछ मिल गया और कुछ सारी ज़िंदगी बस एड़ियां ही रगड़ते रहे, इस दुनिया में हर व्यक्ति अपने टाइम ज़ोन की बुनियाद पर काम कर रहा है, वास्तविकता में हमें ऐसा लगता है कुछ लोग हमसे बहुत आगे निकल चुके हैं और शायद ऐसा भी लगता हो कुछ हमसे अभी तक पीछे हैं, लेकिन हर व्यक्ति अपनी अपनी जगह ठीक है अपने अपने समय के अनुसार....!! क...

योगी आदित्यनाथ- भगवा के प्रतीक

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इनकी पीड़ा सिर्फ हाथरस पर शोर मचाना ही नही है। पीड़ा केवल जातिवाद भी नही है। पीड़ा सिर्फ राजनीति भी नही है, बल्कि इनकी पीड़ा इससे भी कहीं अधिक बढ़कर हैं। इनकी मुख्य पीड़ा भगवाधारी योगी हैं। ये स्वीकार ही नही कर पा रहे हैं आखिर भगवा वस्त्र पहना कोई व्यक्ति सत्ता पर आसीन कैसे हो सकता हैं। ये स्वीकार ही नही कर पा रहे आखिर तथाकथित सेक्युलर राष्ट्र में कोई भगवाधारी योगी सत्ता कैसे चला सकता हैं। आप इनकी घृणित मानसिकता का अन्दाजा भी नही लगा नही सकते। जब-जब ये भगवा वस्त्र धारण किये योगी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देखते हैं, तो इनके तनबदन में आग लग जाती है। ये इतने अधिक कुंठा में आ जाते है कि किसी भी हद को पार कर सकते हैं। क्योंकि भगवा के प्रति इनकी घृणित, नफरती मानसिकता के मुताबिक इन्होंने वर्षो से भगवा को कुचला है। 70 वर्षो तक कांग्रेस ने, 100 वर्षो तक वामपंथ, 200 वर्षो तक वेटिकन, 500 वर्षो तक कट्टरपंथियों ने भगवा को लहूलुहान किया। आज भी जारी हैं। फिर इनके मुताबिक आखिर कैसे एक भगवा वस्त्रधारी सत्तासीन हो सकता है। अतः पिछले तीन वर्षों से विरोधियों का पूरा तंत्र, इकोसिस्टम, नेक्सेस योगी को विभि...

हाथरस उत्तरप्रदेश प्रसंग

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हाथरस उत्तर प्रदेश प्रसंग पर कुछ लिखने का प्रयास किया है … एक ग्रामीण को विवाह के बहुत सालों बाद पुत्र हुआ लेकिन कुछ वर्षों बाद बालक की असमय मृत्यु हो गई…… ग्रामीण शव लेकर श्मशान पहुंचा, वह मोहवश उसे दफना नहीं पा रहा था, उसे पुत्र प्राप्ति के लिए किए जप-तप और पुत्र का जन्मोत्सव याद आ रहा था …… श्मशान में एक गिद्ध और एक सियार रहते थे, दोनों शव देखकर बड़े खुश हुए, दोनों ने प्रचलित व्यवस्था बना रखी थी- दिन में सियार मांस नहीं खाएगा और रात में गिद्ध …… सियार ने सोचा यदि ग्रामीण दिन में ही शव रखकर चला गया तो उस पर गिद्ध का अधिकार होगा, इसलिए क्यों न अंधेरा होने तक ब्राह्मण को बातों में फंसा कर रखा जाए …… वहीं गिद्ध ताक में था कि शव के साथ आए कुटुंब के लोग जल्द से जल्द जाएं और वह उसे खा सके …… गिद्ध ग्रामीण के पास गया और उससे वैराग्य की बातें शुरू की …… गिद्ध ने कहा- हे मनुष्यों, आपके दु:ख का कारण यही मोहमाया ही है, संसार में आने से पहले हर प्राणी का आयु तय हो जाती है, संयोग और वियोग प्रकृति के नियम हैं …… आप अपने पुत्र को वापस नहीं ला सकते, इस लिए शोक त्यागकर प्रस्थान करें, संध्...

श्री लाल बहादुर शास्त्री

#स्वर्गीय_श्री_लालबहादुर_शास्त्री_जी #भारत_के_द्वितीय_प्रधानमंत्री एवं #स्वतंत्रता_सेनानी #लालबहादुर_शास्त्री_जी  (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी)  मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द (सोवियत संघ रूस) भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात #शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पा...